५८२ ॥ श्री ठाकुर बड़कऊ सिंह जी ॥
पद:-
मान बड़ाई नाक कटावै।
या के मारे भजन होय नहिं बिरथा चाट चटावै।
अंत समय यम करैं कुटम्मस तब कोउ नहीं हटावै।
प्राण निकारि छोड़ि देंय जड़ तन लै इजलास अटावैं।
कर्म अनुसार सजा दै देवैं एक मिनट न घटावैं।५।
सतगुरु बिना पाप का भारा को जग और मिटावै।
राम नाम सुमिरन की विधि दे तन मन प्रेम सटावैं।
ध्यान धुनी परकाश दसा लय सारे असुर लटावैं।
सीता राम सामने राजैं जे भव तुरत पटावैं।९।