५८३ ॥ श्री मझिलकू सिंह जी ॥
पद:-
मान बड़ाई त्यागन कीजै।
या से भजन में विघ्न होत अति बिरथा आयू छीजै।
अन्त समय यम आय पकड़ि कै सब तन कर से मीजै।
प्राण शरीर भरे में दौरै मांगै पानी दीजै।
मुख से बोलि न पाओ तब तुम लखौ धरी सब चीजैं।५।
तन छोड़ाय लै नर्क में डारैं बोयौ जहां क वीजै।
या से चेत करो अब सतगुरु काहे गुदरी भीजै।
ध्यान धुनी परकाश दसा लय सन्मुख राम सिया लखि लीजै।
अनहद सुनो देव मुनि दर्शैं अनुपम अमृत पीजै।
अंत त्यागि तन निजपुर राजौ छूटि जाय जग तीजै।१०।