५९९ ॥ श्री पंडित सत्य देव जी ॥
पद:-
रज तम सत का त्रिफला भाई कूट कपड़ छन कीजै।
काम क्रोध मद लोभ मोह यह नमक पांच घिस लीजै।
इस चूरन को खाय हजम कर तन मन शोधन कीजै।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने लीजै।
अनहद सुनो देव मुनि आवैं लिपटि प्रेम नित कीजै।५।
अन्त त्यागि तन चढ़ि सिंहासन अचल धाम चलि लीजै।
सतगुरु करि चूरन बिधि सीखो अब मति देरी कीजै।
सत्यदेव कहैं पार होहु तब बिनय मानि मम लीजै।८।
दोहा:-
हरि सुमिरन में अस जुटै जिमि त्रिसठि का अंक।
सत्य देव कह जियति ही सो ह्वै जाय निशंक।१।