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६०० ॥ श्री लैमर जी ॥


पद:-

राखो राम नाम की आशा।

सतगुरु करि सुमिरन विधि लीजै छूटै भव का लाशा।

कर जिह्वा नेकौ नहिं डोलै सूरति शब्द में ठांसा।

ध्यान प्रकाश समाधि धुनी हो रूप सामने खासा।

सुर मुनि आय आय कर भाई बैठें नित प्रति पासा।५।

अनहद हर दम घट में बाजै सुनि सुनि होहु हुलासा।

नागिन जगै चक्र सब घूमैं कमलन होय बिकासा।

इड़ा पिंगला एक में होय जांय सुखमन ह्वै जाय स्वांसा।

विहंग मार्ग से निज गृह जावो निर्भय करो निवासा।

शान्ति दीनता जिन गहि लीन्हो तन मन प्रेम में फांसा।१०।

या पद के ते भे अधिकारी कर्म शुभाशुभ नासा।

लैमर कहैं चेत हरि सुमिरौ तन है बारि बतासा।१२।