६०१ ॥ श्री लय छुट जी ॥
पद:-
सुनिये राम नाम का तार।
सतगुरु से सुमिरन विधि जानो खुलि जावै एकतार।
हर दम रं रं रं रं बाजै जियति मिटै भव जार।
ध्यान प्रकाश समाधी होवै करैं देव मुनि प्यार।
अनहद की धुनि मधुर मधुर हो पिओ अमी की धार।५।
सन्मुख में झांकी हो बांकी सीता संग सरकार।
कमल खिलैं चक्कर हों चालू नागिन करै संभार।
चन्द्र सूरज एकै गृह में हों सुखमन स्वांसा डार।
मारग विहंग जाय ले निजपुर तिरगुन से हो न्यार।
माटी का पुतला है यह तन एक दिन ह्वै है छार।१०।
यह पद ऊंच नीच बनि लीजै काहे बने गंवार।
लयछुट कहैं भजौ तन मन ते प्रेम में हो मतवर।१२।