७७० ॥ श्री दरबार शाह जी ॥
पद:-
संसारी फिकिर से फरक रहै सो है फकीर फक फक बरिहै।
सतगुरु से नाम की बिधि जानै सो तो भक्तौं जियतै तरिहै।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधी हो सिया राम सामने में करि है।
सुर मुनि भेटैं घट साज सुनै अमृत चाखै घट से गिरि है।
सब कमल खिलैं सब चक्र चलैं नागिन जागै लोकन फिरि है।
तन छोड़ि चलै निज धाम रहै फिर गर्भबास में नहि परि है।६।
शेर:-
सुख जो है फकीरी में वही सच्ची अमीरी है।
करै सतगुरु भजन जानै प्रभू पासै न दूरी है।१।