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८१३ ॥ श्री धुध कारी जी ॥


दोहा:-

श्री गोकरण कृपा करि दीन मोहिं निवकाय।

श्री भागवत सात दिन प्रेम से दीन सुनाय।१।

प्रेत योनि से छूट के हरि पुर चलेन सिधाय।२।

कहैं धुंधकारी सुनो सब प्रकार सुख भाय।३।