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८२५ ॥ श्री दीन जी ॥


पद:-

हरि नाम पर तन मन को जिसने कर दिया कुरबान है।

जग जाल से फुरसत मिली सोई बड़ा इन्सान है।

मुरशिद किया जिसने नहीं वह घूमता हैरान है।

शैतान तन में पांच जो मन को किये खपकान है।

जब तक दवा मिलती नहीं तब तक नहीं कछु ज्ञान हैं।५।

पहिचान जिसको हो गई फिर जान में भा जान है।

ध्यान लय परकाश पाकर सुन रहा धुनि तान है।

लखै हर दम राम सीता दीन कह नहिं शान है।८।