साईट में खोजें

८२६ ॥ श्री बुद्ध प्रकाश जी ॥


पद:-

मसखरापन छोड़ि के तन मन कि की जिन एकता।

हर समय घनश्याम राधे की छटा सो देखता।

ध्यान धुनि लय नूर पाकर हो गया वह बेखता।

अनहद बजै बाजा मधुर संग राग होते रेख़ता।

हर जगह सब में रमें मुरशिद बिना है बे पता।

कहता है बुद्ध प्रकाश सुमिरन बिन बशर दुख झेलता।६।