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८३७ ॥ श्री सहूरन जी ॥


पद:-

मुझे मादर पिदर सौहर पिसर से कुछ न मतलब है।

शरन मुरशिद की चलि सुमिरन कि बिधि सिखने से मतलब है।

ध्यान परकाश लय औ धुनि मिलै सुनने से मतलब है।

बशर तन पाके मति चूकै भजन करने से मतलब है।

दीनता सत्य के मारग पै पग धरने से मतलब है।५।

सदा घनश्याम राधे की छटा लखने से मतलब है।

सहूरन कह जगत जंजाल को तजने से मतलब है।

छोड़ि तन चढ़ि सिंहासन हरि के पुर चलने से मतलब है।८।