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८३८ ॥ श्री हरि वंश जी ॥


पद:-

पर नारिन को ताकैं अधम कपटी।

काम भुजंग कहा नहि मानत तन मन कर दीन्ह्यो खपटी।

बिना दबाव असिल नहिं काटत कमसिल जात तुरत लपटी।

बिना अस्त्र के बस न चलत कछु कौन भांति वाको डपटी।

या के काटे मरि मरि जावै सब के तन बैठा छपटी।५।

चंचल नारि बड़ी है या की मानत नहिं नेकौ नकटी।

निज बहिनिन के तन मन फेरै पल लागत लेवै झपटी।

राते दिवस एकौ नहिं मानत लखते चट जावै चपटी।८।