८४० ॥ श्री पुन्नू जी ॥
पद:-
करो सतगुरु तजो खट पट भजो हरि को सुनो मेरी।
रमे सब में मिलैं चट पट प्रेम करने कि है देरी।
मोह माया के चक्कर में पड़े सुधि छोड़ घर केरी।
अन्त में होयगा दोज़ख पड़ै पग अहिनी बेरी।
घोर अन्ध्यार नहिं सूझै दूत चारों तरफ़ घेरी।५।
जान पर हर समय आफ़त मरम्मत होय खुब तेरी।
सुरति को शब्द पर धरि कै सुनो जब नाम की भेरी।
कहैं पुन्नू कहा मानो तो फिर जग में न हो फेरी।८।