८४५ ॥ श्री सरजू दास जी ॥
पद:-
अरज़ी सतगुरु हेरि के दीजै यारों चोरन सब धन लूटा।
तप धन बिना बसर कहुँ नाहीं मुख ठोकैं जम खूँटा।
सुमिरन कि बिधि जानि जाओगे परै न कबहूँ टूटा।
ध्यान धुनि नूर लय को पावो रूप सामने जूटा।
सुर मुनि सब नित दर्शन देवैं भरम क भाण्डा फूटा।५।
तिनकी समझौ मंगल कारी करम रेख का घूँटा।
सूरजदास कहैं या बिधि ते जिन चोरन कसि कूटा।
आवागमन क काम रहै नहि जगत से नाता छूटा।८।