साईट में खोजें

८४६ ॥ श्री भवानी दीन जी ॥


पद:-

अब हीं सवेरा भजो मन हरि को।१।

कर मींजौ पछिताव अन्त में जब जमदूत करैं भठभेरा

भजो मन हरि को।

प्राण लिहे बिन छोड़ै नाहीं रहि रहि देवैं दुःख घनेरा

भजो मन हरि को।

केश पकरि कढ़िलावत लै चलैं सांटिन के तन परिहै बरेरा

भजो मन हरि को।

लै इजलास पै हाजिर करिहैं क्या बतलैहौ देंय दरेरा

भजो मन हरि को।५।

चारों तरफ़ से घेरि के पीटैं आंखें लाली भौंह तरेरा

भजो मन हरि को।

हाथ पांव गहि नर्क में छोड़ैं सूझत नहिं तहं घोर अंधेरा

भजो मन हरि को।

कहत भवानी दीन दोउ कर जोरे करु सतगुरु हरि पुर मिलै डेरा।

भजो मन हरि को।८।


शेर:-

जिस फूल में खुशबू नहीं उस पर न मधुकर जायगा।

कहता भवानी दीन जहं पर महक वह सुख पायगा।१।