८४७ ॥ श्री भूषन शाह जी ॥
पद:-
जब सूरति शब्द में लागि जाय तब तार न टूटै हो बाबा।१।
जब ध्यान प्रकाश समाधी हो तब द्वैत न लूटै हो बाबा।२।
जब सन्मुख राम सिया दर्शैं तब प्रेम न छूटै हो बाबा।३।
जब सतगुरु से उपदेश मिला तब हरि पुर जूटै हो बाबा।४।
पद:-
जब सूरति शब्द में लागि जाय तब तार न टूटै हो बाबा।१।
जब ध्यान प्रकाश समाधी हो तब द्वैत न लूटै हो बाबा।२।
जब सन्मुख राम सिया दर्शैं तब प्रेम न छूटै हो बाबा।३।
जब सतगुरु से उपदेश मिला तब हरि पुर जूटै हो बाबा।४।