८६४ ॥ श्री बिटाना माई जी ॥
पद:-
बहुत तुम सताते सखिन को हौ लाला।
दही दूध माखन को खाते हो आला।
लिये ग्वाल संग में करैं क्या ववाला।
हसि के लिये हमने तुम को है पाला।
दिवस के हौ डाकू निशा चोर चाला।५।
शिकायत से मेरा ड़त्द्र सूखा छाला।
सबी वस्तु निज घर तेरा देखा भाला।
शरारत लिखा बिधि ने क्या तेरे भाला।
बिटाना कहैं मातु कहती हैं लाला।
कहा मानो बृज की दुखी सब हैं बाला।१०।