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८९० ॥ श्री लौवा शाह जी ॥


पद:-

करो सतगुरु भजो हरि को बृथा क्यों हो रहै बौबा।

मिला दुर्लभ ये क्या नर तन बिना सत संग जिमि कौवा।

अन्त में को सहायक हो आय घेरेंगे जब हौवा।

पीटते लै चलैं तुमको छुटै धन धाम सब खौवा।

ध्यान धुनि रूप लै रोशन पाय जियतै में जो जौवा।

वही फिर अन्त हरि के ढिग जाय बैठैं कहैं लौवा।६।