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९११ ॥ श्री बचोली माई चमारिन जी ॥


पद:-

हरि सुमिरन बिन तन जाय अन्त में गपोली निकली।

यम पकड़ैं जब रिसियाय न मुख से बोली निकली।

मारत लै चलिहैं धाय बदन की खोली निकली।

इजलास पै दें ठड़ियाय बात सब पोली निकली।

खाता सब देंय सुनाय अधर्म ठठोली निकली।५।

तहं पर खुब परै पिटाय हाय की बोली निकली।

कसि नर्क में छोड़ैं जाय कौन बिधि डोली निकली।

तहं पवन न आवै जाय गन्ध को खोली निकली।

अति घोर अंधरिया भाय दृगन दोउ गोली निकली।

कलपन तहं भोगो जाय मास तन छोली निकली।१०।

रोवैं मातु पिता सुत भाय नारि शिर खोली निकली।

तब तन लखि लखि बिलखाय जिगर में फफोली निकली।

फिर लै कफ़नाय उठाय भवन से खटोली निकली।

कांधे चारि के चढ़ि तन जाय संघ बहु टोली निकली।

धरि दें फिर मरघट लाय चिता हित बोली निकली।१५।

कंडा काठ क चिता बनाय धरै अनमोली निकली।

फिर फूस में अग्नि लगाय धरैं मुख होली निकली।

सब तन जरि जावै भाय भसम भरि झोली निकली।

करो सतगुरु दुख मिटि जाय एक दिन चोली निकली।

श्री राम पिता सिय माय सुमिरि के बचोली निकली।१९।


शेर:-

पान ढोलिन चबाते थे नरक में कीड़े तन काटें।

भजन में मन न लाते थे वहां जमदूत नित डाटें।१।

झूठ कहि यहं हंसाते थे वहां पल भर न कल पावैं।

बचोली कह बिना सुमिरन हाय रे हाय चिल्लावैं।२।