२२ ॥ श्री राम बिहारी जी ॥
पद:-
लुबुरू लुबूरू मन होत है, बिषै का चसका लाग।१।
सुमिरन वह कैसे करै, तन से मन जब भाग।२।
माला हाथ में लिये हैं मन तो खेलत फाग।३।
तन अकेल क्या करि सकै लागो वा में दाग।४।
पद:-
लुबुरू लुबूरू मन होत है, बिषै का चसका लाग।१।
सुमिरन वह कैसे करै, तन से मन जब भाग।२।
माला हाथ में लिये हैं मन तो खेलत फाग।३।
तन अकेल क्या करि सकै लागो वा में दाग।४।