८८ ॥ श्री कृष्ण सहाय जी ॥
पद:-
निरखो श्याम मनोहर प्यारो।
कौन भाँति कोइ सोभा बरनै जो सब जगत संवारो। मनोहर प्यारो॥
सुर मुनि सब निशि बासर ध्यावत शेष सहस मुख हारो। मनोहर प्यारो ॥
कर्म अनुसार खबरि सब की ले सब में सब से न्यारो। मनोहर प्यारो॥
सतगुरु करि सुमिरन बिधि लीजै ध्यान धुनी उजियारो। मनोहर प्यारो॥
लय में पहुँचि जाव नहिं सुधि बुधि उतरो फेरि निहारो। मनोहर प्यारो।६।
करि रियाज जियतै करतल करो मानो बचन हमारो। मनोहर प्यारो॥
कृष्ण सहाय कहैं तन छूटै हरि पुर चलि पग धारो। मनोहर प्यारो॥
बाम भाग में राधे राजत मुरली अधर पै धारो। मनोहर प्यारो॥
भक्तन के संग ही संग डोलत अगणित पापिनि तारो। मनोहर प्यारो॥
प्रेम से प्रगट होय हैं पासै तन मन जब तुम वारो। मनोहर प्यारो॥
दुख सुख को सम करिकै मानो पीछे पग मति टारो। मनोहर प्यारो।१२।