१२१ ॥ श्री मियां महबूब जी ॥
पद:-
लखौ सभी जां रमा है प्यारा जसोदा नन्द सुत मनोहर माधौ।
मिलो तो मुरशिद से जा के यारों लगा के तन मन पगौं को साधौ॥
बता दें सूरति शबद का मारग विश्वास करके उसी में लागौ।
लै ध्यान धुनि नूर होय करतल जियति ही भव का समुद्र नाघौ॥
रहै क्या बांकी चमकती झाँकी हमेशा सन्मुख में प्रेम पागौ।
बजै जब बारह पै दो निशा में उठि बैठि अजपा पै ख्याल तागौ॥
बरम महूरत इसी को कहते इसी में साधन हो सिद्धि जागौ।
महबूब कहता है अन्त तन तजि बिमान चढ़ि चट हरि पुर को भागौ॥