१५८ ॥ श्री हरि शरण दास जी ॥
चौपाई:-
पत्तल फेरेन फेरि उठायन। अन्त समय हरि पुर हम पायन॥
हरी शरण है नाम हमारा। क्षत्रिय कुल में भा अवतारा।२।
चौपाई:-
पत्तल फेरेन फेरि उठायन। अन्त समय हरि पुर हम पायन॥
हरी शरण है नाम हमारा। क्षत्रिय कुल में भा अवतारा।२।