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१८३ ॥ श्री बनावन शाह जी ॥


पद:-

ऊपर से दानी ज्ञानी। भीतर है पाप घानी॥

होवैंगे सारे फानी। पावैं न कौड़ी कानी॥

बनि बैठि यहाँ पै मानी। जियतै नरक निशानी॥

यमपुर है दुख कि खानी। मल मूत्र पावैं सानी॥

सतगुरु से जिसने जानी। तिन राम नाम छानी।५।

बिलगान दूध पानी। जारी भै ब्रह्म बानी॥

लय नूर बनिगे ध्यानी। सन्मुख में सारंग पानी॥

अनहद कि धुनि सुनानी। सब सुर मुनि दर्शैं आनी॥

जिन नेम टेम ठानी। तिनकी हुई न हानी॥

तन मन कियो कुरबानी। ते गे अचल रजधानी।१०।