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२११ ॥ श्री समी उल्ला जी ॥


पद:-

दुखरा निज घऱ का बतलाई।

सुनी कहैं नहिं नैनन देखा सत्य मानिये भाई।

सन्त क भेष डरत नहिं नेकौं करत रहत मन भाई।

बरतन अन्न वस्त्र औ गोवें बेंचत हिय हर्षाई।

पूजा में जो चढ़त मिठाई ताहि लेत हलवाई।५।

सुत हेत कर्जा हैं बांटत कागज़ धरत लिखाई।

पढ़ि सुनि मीठे बचन सुनाय के चेला लेत बनाई।

जौन भांति धन हो एक ठौरी सोई रचत उपाई।

सबसे मेल अदालत में करि सीखी खुब धुरथाई।

सूत देन में देर करत जो डाटत नैन दिखाई।१०।

ऐंठत कान लगावत थप्पड़ मुर्गा देत बनाई।

चेला चेलिन को लै करके करते बिषय लुकाई।

आँखिन अन्धे कानन बहिरे मन की मति बौराई।

सतगुरु किह्यौ न तन फल पायो अन्त गह्यो यम आई।

दया धर्म सुमिरन को त्याग्यौ हिन्द तुरक इसाई।

कहैं समी उल्ला चित चेति के गुनि लो तन मन ताई।१६।