२१२ ॥ श्री लोटन शाह जी ॥
पद:-
सुमिरो नाम पलक दरियाई।
सतगुरु करो भजन बिधि जानो छूटै तन मन काई।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोवन खुलि जाई।
सुर मुनि मिलैं सुनौ घट अनहद पिओ अमी हर्षाई।
अजा असुर सब करैं दण्डवत नित प्रति शीश नवाई।५।
निर्भय चहै तहां फिरि डोलौ कोई न आँख उठाई।
चन्द्र सूर्य्य का मेल जाय ह्वै सुख मन स्वांस कहाई।
विहंग मार्ग तब मिलै मानिये जो मुद मंगल दाई।
कुण्डलिनी सब लोक लखावै षट चक्कर घुमराई।
सातौं कमल खिलैं अति सुन्दर अजब सुगन्ध उड़ाई।१०।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख रहैं सदाई।
लोटन शाह कहैं तन छूटै चलौ अचल पुर धाई।१२।
दोहा:-
रेफ बिन्दु बीज है,वाको सारा खेल।
सतगुरु से बिधि जानिये, होय ब्रह्म से मेल।१।
लोटन शाह कि बिनय यह, गहौ दीनता शान्ति।
सब करतल जियतै करौ, छूटै तन मन भ्रान्ति।२।