२१५ ॥ श्री रिहाई शाह जी ॥
पद:-
सँवलिया नन्द के लालन हमै तो लागते आछे।
कभी प्रिय संग में सोहैं कभी गोपी सखा पाछे॥
कभी भूषन बसन साजे कभी कटि पीत पट काछे।
कभी दधि दूध माखन ले कभी सब छीन लें छाँछे॥
कभी मुरली बजा देवैं कभी चढ़ि बैठते गाछे।
कभी सुरभी लिये बन में हँसैं दुलराँय गहि बाछे॥
करो मुरशिद भजन जानो शान्ति तन मन के हों माछे।
ध्यान धुनि नूर लय होवै रहैं सन्मुख सदा आछे॥