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२२६ ॥ श्री मुत्तन शाह जी ॥


पद:-

सूरति से अजपा जाप जप लो शरनि सतगुरु की गहो।

धुनि ध्यान लय परकाश सन्मुख रूप निज छाया चहो।

जियतै में मुक्ती भक्ति पाकर मस्त दुख सुख सम सहो।

सुर मुनि मिलैं अनहद सुनो अमृत पिओ मुख क्या कहो।

हरि यश भनौ औ सुनौ जब तक जगत में प्यारे रहो।

तन त्यागि कै निज धाम लो फिर गर्भ झुल्लू क्यों लहो।६।