२२९ ॥ श्री ठोकन शाह जी ॥
पद:-
सतगुरु किया जिसने नहीं यह निज वतन किमि जायगा।
शब्द पर सूरति दिया नहिं नाम धुनि किमि पायगा।
ध्यान नूर समाधि में चलि निज को किमि बिसरायगा।
सुर मुनि कि संगति साज अनहद अमी किमि पी पायगा।
शक्ति नागिन को जगा सब लोक किमि लखि आयगा।५।
षट चक्र बेधि के कमल सातों उलटि कैसे खिलायगा।
स्वांस सुखमन के बिना मारग विहँग किमि धायगा।
सत्संग भक्तों के बिना हरि चरित कैसे गायगा।
राम सीता की छटा छबि सामने किमि छायगा।
अजपा पै तन मन प्रेम के बिन ख्याल कैसे लायगा।१०।
मानुष क तन बिरथा किया जग ही में चक्कर खायगा।
असुरों कि संगति में पड़ा रोयेगा औ पछितायगा।१२।