२६५ ॥ श्री जगन्नाथ कुंवरि जी ॥
पद:-
साधन राम नाम का कीजै।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानि के तन मन प्रेम में दीजै।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोवन सुनि लीजै।
अनहद बजै देव मुनि दर्शैं अमृत टपकै पीजै।
हर दम राम सिया रहैं सन्मुख द्वैत दूर धरि दीजै।५।
अन्त त्यागि तन राम धाम ले जो इस रंग में भीजै।
यह तन सुरन को दूर्लभ जानो बृथा न आयू छीजै।
या से बैन मानि नर नारी बोय लेहु यह बीजै।
यम गण तुम्हैं देखि कर भाजैं कर पर धरि कर मींजैं
या बिधि के बिन मिलै न छुट्टी फँसे रहौ भव तीजै।१०।