२६७ ॥ श्री भजनी माई जी ॥
पद:-
भजिये राम नाम सुख दाई।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो छूटै तन मन काई।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोंवन खुलि जाई।
सुर मुनि मिलैं सुनौ घट अनहद पिओ अमी हर्षाई।
नागिन जगै चक्र षट बेधैं सातौं कमल फुलाई।५।
पांचों तत्व के रंग लेव लखि स्वरन ते महक उड़ाई।
मुद्रा आसन तीरथ ब्रत सब करैं नित्य सेवकाई।
हर दम नैनन सन्मुख राजैं सिया सहित रघुराई।
शान्ति दीनता प्रेम से सब जन कीजै यही कमाई।
अन्त त्यागि तन निज पुर बैठो छूटै गर्भ झुलाई।१०।