२६८ ॥ श्री मती माई जी ॥
पद:-
तन मन नाम क बीज जमाओ।
सतगुरु से किसनई जान लो बृथा न वैस गँवाओ।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोंवन सुनि पाओ।
सुर मुनि मिलैं बजै घट अनहद अमी चखौ हर्षाओ।
नागिन जगै चक्र षट बेधैं सातों कमल खिलाओ।५।
निर्भय औ निर्बैर जियति बनि हरि यश जग फैलाओ।
राम सिया की झाँकी सन्मुख हर दम निज में छाओ।
अन्त त्यागि तन राम धाम लो गर्भ में मति फिर आओ।८।