३२७ ॥ श्री चंट शाह जी ॥
पद:-
जिन यह मन नहिं काबू कीन्ह्यो अन्त ते नर्क को जाते।
हर दम यम दुख उनको देते आह मचाते हैं।
झूठा भेष बनाय साधु का धोका खाते हैं।
भोजन बसन औ मान बड़ाई में परि जाते हैं।
सुमिरन पाठ कीर्तन पूजन से बिलगाते हैं।५
मन मानी बातैं करि हँसि हँसि शीश हिलाते हैं।
वेद शास्त्र पढ़ि करैं नौकरी नहिं शरमाते हैं।
मास मास पर तलब मिलै कर गहि मुसक्याते हैं।
कोई साफ़ी पारस बेचैं कोई गाते हैं।
कोई साज बजाय कमावैं कोई फुसलाते हैं।१०।
कोई पूजा भण्डार कराई कोई जल लाते हैं।
कोई रामाधुनि में पैसा ले तब आते हैं।
नाना भाँति से द्रब्य कमावैं वैस गँवाते हैं।
संतन का यह धर्म नहीं जो ढोंग बनाते हैं।
ब्रह्म ज्ञान की बातैं पढ़ि सुनि ठगैं ठगाते हैं।१५।
सत्संगति जहँ साँची होवै बोलि न पाते हैं।
आवै अगर बोलावै कोई क्या बतलाते हैं।
चलौ आप हम आवैंगे विश्वास दिलाते हैं।
चंट शाह कहैं वहाँ जाँय नहिं सत्य सुनाते हैं।
सतगुरु बिना पार किमि होवैं असुर रुलाते हैं।२०।
शेर:-
हरामी से पैदा हुये नारि नर। न हो उनसे सुमिरन रहै पाप कर॥