३५८ ॥ श्री उल्टन शाह जी ॥
पद:-
तन समय है अनमोल मानो नारि नर मत चूकना।
सतगुरु करो हरि को भजो छूटै गरभ का भूँकना।
धूनि ध्यान लय परकाश पा माया असुर गहि बूँकना।
सुर मुनि मिलैं तन में लिपट दें गुद गुदा हो हूकना।
अनहद सुनौ अमृत पिऔ निर्भय रहौ तजि पूकना।५।
सन्मुख लखौ घनश्याम को मुरली अधर धरि फूँकना।
सब साज ताल और तान स्वर क्या राग रागिनि कूकना।
स्तब्ध सब सुनि जांय ह्वै किमि होंय तँह पर हूँकना।
पढ़ि सुनि व गुनि के जाव लगि आनन्द लो हौ मूकना।
तन त्यागे निजपुर बास हो जहँ खान पान न थूकना।१०।