३६५ ॥ श्री रहीम जान जी ॥
पद:-
मुरशिद करि सूरति शब्द पै दो हालै मति रसना हलक हलक।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधि चलो तहँ होहु गरक नहिं मलक फलक।
सुर मुनि सब आय के दें दरशन बोलैं नहिं मारे पलक तलक।
घट साज सुनो कौसर चाखो भरा सागर होय न छलक छलक।
नीरज फूलैं सब चक्र सुधैं नागिनि चमकै जिमि अलक अलक।
हर दम सन्मुख महबूब लखौ क्या झाँकी बाँकी झलक झलक।६।