४५३ ॥ श्री झँझू शाह जी ॥
पद:-
सुमिरन बिन जम करैं पिटापिट्ट। मारैं औ झिटकैं झिटा झिट्ट॥
लातन से रौंदें किटाकिट्ट। गहि नर्क में छोड़ैं मिटा मिट्ट॥
आलस में बैठे सिटा सिट्ट। सतगुरु करि चेतौ फिटा फिट्ट॥
सुख सागर में हो गिला गिल्ट। तब फेरि न ह्वै हौ बिला बिल्ट॥
करते बिन सुमिरन गिट्ट पिट्ट। जम ऐहैं तब हो सिट्ट पिट्ट॥
सतगुरु करि चेतो सट्ट पट्ट। चोरों की छूटे खट्ट पट्ट।६।
पद:-
चोरन संग चेति के रहेना। किमि तप धन का लें गहेना॥
कटु बैन सबों के सहेना। बातों में कभी न बहेना॥
दुख आन पड़े मत कहेना। तब होवै पूरा लहेना॥
संसारी वस्तु न चहेना। यह बैन मेरे उर गहेना॥
फिर होय न जग में ढहेना। हरि हाथ पकड़ि लें दहेना।५।