४६८ ॥ अनन्त श्री स्वामी सतगुरु नागा ॥(८)
साधक नाम से नेह लगावै।
गर्भ में कीन करान जौन है सो जियतै दिखलावै।१।
सतगुरु से सुमिरन बिधि जानै, बैठि एकान्त में ध्यावै।
ध्यान धुनी परकाश समाधी, बिधि कर लेख मिटावै।२।
सिया राम की झाँकी सन्मुख हर दम वाके छावै।
अमृत पिये सुनै घट अनहद सुर मुनि गहि उर लावै।३।
नागिन जगै चक्र षट नाचैं सातों कमल खिलावै।
उड़ै तरंग रोम सब पुलकैं, मुख से बोल न आवै।४।
तुरिया तीत दशा यह जानो, सहज समाधि कहावै।
राम दास नागा कहैं तन तजि, चढ़ि विमान घर जावै।५।