॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
हैं पाले शान औ मान, बैन कूकर सम भूकैं।
सतगुरु करि हरि भजै कहैं अन्धे बनि मूकैं।
ताके सन्मुख श्याम हर समय मुरली कूकैं।
ध्यान धुनी परकाश दशालय में चलि लूकैं।
तीनों गुण ते परे कर्म दोनों गहि बूकैं।१०।
अन्त जांय निज धाम बहुरि जग में नहिं भूकैं।
हरि सुमिरन बिन हाय हाय कर नर्क में हूँकैं।१२।
पद:-
हैं कसाई पांच तन में घात करि के मारते।
अंधे कहैं भक्तौं कठिन, बचना है इनकी वार ते।
सतगुरु करै मारै इन्हैं, चट शान्ति की तलवार ते।
धुनि ध्यान लय परकाश हो, मिलि ले सिया सरकार ते।
हर समय है तन मन मगन, क्या छटा छबि सिंगार ते।५।
दशा तुरियातीत भई, पितु मातु के दीदार ते।
तन छोड़ अवध में बास लें फिर जग में पग नहिं धारते।
यह कुल की अपने रीति है, जियतै तरैं औ तारते।८।
पद:-
सिपाही उसको कहते हैं लड़ै सन्मुख न पग टारै।
दाँव उसको देय पहिले हांक देकर के फेरि मारै।
मरै जो सामने कोई, चलै हरि धाम पग धारै।
अस्त्र गिरि जाय धरनी में, हाथ उस पर अगर डारै।
करै वह नर्क में बासा, देव मुनि उसको धिक्कारैं।५।
सहै दुख हर समय नाना, गिरै फटकै औ चिंघारैं।
युद्ध जो धर्म का करते, भला वै किस तरह हारैं।
कहैं अंधे बिजय का हार, हरि उनके गले डारैं।८।
शेर:-
बकाया गर्भ के ऋण का मिटा दे सो भगत हरि का।१।
कहैं अंधे नहीं तो वह रहेगा नहिं किसी दरि का।२।
पद:-
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि गिरिजा शंकर का दरबार।
सतगुरु करो भजन बिधि जानो, हर दम हो दीदार।
सुर मुनि सब तब जै जै बोलैं, जियति होहु भव पार।
नाम कि धुनि परकाश समाधी, बिधि गति देवै टार।
कमल चक्र शिव शक्ती जागै, अनहद की गुमकार।५।
अमृत पान करो मन माना, गगन ते जारी धार।
अन्धे कहैं अन्त निज पुर हो, टूटै जग का तार।
सबके हित यह पद हम गाया पढ़ि सुनि लो उरधार।८।
पद:-
हरि नैन सैन क्या बैन पैन उर ऐन हमारे कीन्हे।१।
अद्भुत सरूप भूपन के भूप अंधे कहैं हम हंसि चीन्हे।२।
दोउ भुकर उठाय सीने लगाय गोदी बिठाय मोहिं लीन्हे।३।
सतगुरु के लाल सुन्दर बिशाल नहिं होय काल मन दीन्हे।४।
पद:-
जो भक्त भजन में माता, वह बहुरि न जग में आता।
घर घर में पीता खाता नहीं किसी से रखता नाता।
विश्वास से जो ढिग जाता, वह दर्शन का फल पाता।
जो उनसे प्रेम लगाता, सो वैसा ही ह्वै जाता।
उसके सिर प्रभु का छाता, वह आनन्द का है दाता।
पढ़ि सुनि गुनि समुझै बाता, अंधे कहैं सो मम भ्राता।६।
चौपाई:-
पढ़ी भागवत राम नाम की। सतगुरु करिके बिना दामकी॥
सनमुख झांकी सियाराम की। अंधे कहे ते अवध धाम की।२।
पद:- जिस भगत की वासनायें मन से हट कर रो रहीं।१।
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