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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥

जारी........

दोहा:-

हरि सुमिरन में जाय लगि एकता जो कोय।

अंधे कह सतगुरु कह्यौ मुक्ति भक्ति ले सोय॥

 

पद:-

बिना भजन के सजन न मिलते भरा है अन्दर बिकार भारी।

कहैं ये अन्धे करो अब सतगुरु नहीं तो हर दम रहौ दुखारी।

लगा के सूरति शब्द पै बैठो लखौ तो सन्मुख रहस बिहारी।

बजाते मुरली मधुर मधुर क्या अधर के ऊपर धरी है प्यारी।

धुनि ध्यान लय तेज हो चमाचम करम भरम औ शरम को टारी।

तन त्यागि करके चलो अवधपुर न फेरि झूलो गरभ मंझारी।६।

 

पद:-

श्री सतगुरु के चरनन शीश धरै लै मन्त्र राज फिर जाप करै।१।

धुनि नाम प्रकास समाधि परै, बिधि लेख की रेख पै मेख ठरै।२।

निज गगन गुफ़ा रस अमी झरै, चाटै सो भक्तौं जियतै तरै।३।

सन्मुख सिय राम रहैं न टरैं, अन्धे कहैं दीनन दुःख हरै।४।

 

पद:-

पढ़ि के कलमा जग नहीं जलमा, वहीं मुसलमा र ब दल मा।१।

अंधे कहैं छलमा सो दुख मलमा, हर दम रोवै हल चल मा।२।

 

दोहा:-

ईमान मुशल्लम होय जब मुशलमान तब होय।

अंधे कह मानो बचन छूटि जायगी दोय॥

 

पद:-

छूटि जायगी दोय रहैम खैरात पै आया।१।

रब का सुमिरन करै मिटै तब गर्भ काया।२।

तन तजि जावै भिशति जौन यहाँ बिजय कमाया।३।

अंधे कहैं पुकारि भेद यह सत्य बताया।४।

 

दोहा:-

रूप्या कर्जा देत हैं सूत ते है इनकार।

अंधे कह रब देत है खान पान का भार।

जहाँ में ऐसे मुशलमां थोड़े परत देखाय।

अंधे कह वे हैं सुखी सांच कमाई खाय।

मन तो काबू है नहीं पढ़ते पांच नमाज।

अंधे कह जम अन्त में पकड़ैं जैसे बाज।६।

 

दोहा:-

मन तो भागत फिरत है रहते रोजा तीस।

अंधे कह पछितांयगे पकड़े अन्त खबीस।

मन तो स्थिर है नहीं कलमा जपते रोज।

अंधे कह जम अन्त में पीटैं निकलै गोज।

बाजा सुनि मिरगा बंधै बीन की धुनि सुनि सांप।

अंधे कह धनि जीव ये प्रेम में तन दें आप।६।

 

पद:-

बन में मरकट बहुत मिलि घुंघचिन क तपता तापते।१।

विश्वास लाले रंग पर लागै हवा नहिं कांपते।२।

अंधे कहैं यह बैन सुनि सतगुरु करै हटि पाप ते।३।

रूप तेज औ नाम धुनि लै पाय छूटै दाप ते।४।

 

पद:-

करै मुरशिद जपै कलमा वही सच्चा मुसलमां है।१।

कहैं अंधे तजै तन जब जहां में फिर न जनमा है।२।

ध्यान धुनि नूर लै पायो लखै र ब के अदलमा है।३।

वहां सुख शान्ति में रहता मातु पितु की बगलमा है।४।

पद:-

सतगुरु से नाम कि जानि बिधि जो भजा सजा जग बीज बया।१।

धुनि ध्यान प्रकास समाधि मिली दोनों दिसि में जै कार भया।२।

सिंगार छटा छबि देखि रहा सिय राम कि भक्तौं नित्य नया।३।

कहैं अंध शाह तन छोड़ि चला चढ़ि यान पै अपने धाम गया।४।

 

पद:-

सांप ने पकड़ा छँछूदरि मूख में धोखा पड़ा।१।

छोड़ दे तो नैन फूटैं गटकि ले तो चट मरा।२।

अंधे कहैं यह हाल जीवन चेतिये अब तो जरा।३।

जारी........