१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(२३)
पद:-
होहु सुमिरन बिन बंटा धार।
सतगुरु करि जप भेद जानि लो मानो बचन हमार।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि हर शै में रंकार।
अनहद बाजै सुर मुनि गाजै पीजै अमृत धार।४।
नागिनि चक्र कमल सब जागैं महक करैं मतवार।
सिया राम हर दम रहैं सन्मुख अद्भुद अजब सिंगार।
माया मृत्यु काल दूरहि ते देखि के खाँय पछार।
अंधे कहैं अन्त निजपुर हो छूटै गर्भ क भार।८।