१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(५२)
पद:-
जानो भक्तों सीतापूर, सीतापूर, सीतापूर, सीतापूर, आ हा हा हा,
आ हा हा हा, आ हा हा हा, आ हा हा हा।१।
सतगुरु से जप भेद ले आवौ, मन को नाम के ऊपर लावौ,
सारे चोरन मारि भगावौ, बज्र केवार खोलि घर जावौ,
सीतापूर, सीतापूर, सीतापूर, सीतापूर, आ हा हा हा, ०।२।
ध्यान प्रकास समाधि में जावै, कर्म शुभाशुभ को कटवावै
हर शै से धुनि नाम की आवै, सन्मुख राम सिया छबि छावै,
सीतापूर, सीतापूर, सीतापूर, सीतापूर, आ हा हा हा, ०।३।
अमृत पान करै हर्षावै, अनहद सुनके तन पुलकावै,
सुर मुनि मिलैं बिहंसि उर लावैं, प्रेम के आँसू दृगन टपकावैं,
सीतापूर, सीतापूर, सीतापूर, सीतापूर, आ हा हा हा, ०।४।
नागिनि जगै चक्र घुमरावैं, सब कमलन को उलटि खिलावै,
गमकैं भाँति भाँति की आवैं, अंधे कहैं गरभ नहिं आवै
सीतापूर, सीतापूर, सीतापूर, सीतापूर, आ हा हा हा, ०।५।
रूप रंग हरि का बनि जावै, दिब्य सिंहासन बैठक पावै,
अजर अमर मुख बोल न आवै, कोटिन भानु की द्युति तन छावै,
सीतापूर, सीतापूर, सीतापूर, सीतापूर, आ हा हा हा, ०।६।