१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(५३)
पद:-
भक्तौं यह दुनियां है झुँट्ठी।
सतगुरु से सुमिरन बिधि जानै तब आवै यह मुट्ठी।
माया माता नेक न बोलैं कबहूँ होंय न रुट्ठी।
अन्धे कहैं देंय तब आशिष ठोकैं दोउ कर पुट्ठी।४।
पद:-
भक्तौं यह दुनियां है झुँट्ठी।
सतगुरु से सुमिरन बिधि जानै तब आवै यह मुट्ठी।
माया माता नेक न बोलैं कबहूँ होंय न रुट्ठी।
अन्धे कहैं देंय तब आशिष ठोकैं दोउ कर पुट्ठी।४।