१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(५४)
पद:-
भक्तौं यह दुनियाँ है कच्ची।
माया द्वैत कि फांस लिहे कर बांधि के निज रंग रच्ची।
या से जीव उबरि किमि जावै छोड़ै नर्क कि गच्ची।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानै राह मिलै तब सच्ची।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि रूप सामने टंच्ची।
अन्धे कहैं हारि तब जावै बनि बैठै जिमि बच्ची।६।
दोहा:-
शान्ति दीनता को गहै, रहै न द्वैत क लेश।
अन्धे कह हरि को भजै, अवध में होवै पेश॥