१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(७६)
पद:-
बाँधौ राम नाम का बिल्ला।
सतगुरु से सुमिरन बिधि जानो पहुँचौ ऊँचे टिल्ला।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि रूप सामने खिल्ला।
कर्म भर्म औ शर्म छूटि गई नाम क लाग्यो किल्ला।
सुर मुनि नित प्रति लेंय बलँय्यां कबहूँ करैं न गिल्ला।
अन्धे कहैं अन्त निज हो छूटि गयो सब हिल्ला।६।
दोहा:-
राम नाम का राज्य है, राम नाम सिरताज।
अन्धे कहैं सतगुरु करो सुमिरौ सब दुख भाज॥