१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(८७)
पद:-
सार भौम बाजत पढ़ि जग में सार वस्तु को नहि जाना।
वाक्य ज्ञान में प्राण नहीं है या से होय न कल्याना।
मान बड़ाई देत गिराई हर दम गाँसे अभिमाना।
सतगुरु करै मिलै तब मारग मुक्ति भक्ति पावै ज्ञाना।
अन्धे कहैं अन्त निजपुर ले छूटै जग आना जाना।
अपने कुल की रीति यही है सुर मुनि वेद शास्त्र माना।६।