१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१६८)
चौपाई:-
अति प्रिय मोहिं अवध के बासी। मम धामदा पुरी सुख रासी॥
सतगुरु करै पास ही भासी। नाम पै मन को देवै ठाँसी॥
निरखै तँह पर अवध निवासी। अन्धे कहैं मिटी चौरासी॥
जिनके लागि प्रेम की गाँसी। राम रूप बैठे अविनासी।४।
चौपाई:-
अति प्रिय मोहिं अवध के बासी। मम धामदा पुरी सुख रासी॥
सतगुरु करै पास ही भासी। नाम पै मन को देवै ठाँसी॥
निरखै तँह पर अवध निवासी। अन्धे कहैं मिटी चौरासी॥
जिनके लागि प्रेम की गाँसी। राम रूप बैठे अविनासी।४।