१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१६९)
चौपाई:-
सिया राम मै सब जग जानी। करौं प्रणाम जोरि जुग पानी।
तुलसीदास कही यह बानी। सत्य सत्य सुर मुनि सब मानी।
सतगुरु करि सुमिरन जब ठानी। सारे चोर गये ह्वै पानी।
राम नाम की धुनि फरियानी। हर शै से हर दम भन्नानी।
तेज समाधि में मन को सानी। सुधि बुधि जहँ पर जाय भुलानी।
उतरौ सन्मुख सारंग पानी। बाम भाग राजैं महरानी।६।
कठिन कुअंक कि मिटी निशानी। गर्भ कि छूटि गई हैरानी।
शाँति दीनता बिन दुख खानी। कैसे जीव तरै अज्ञानी।
सब से तुच्छ आप को मानी। तुलसी दास भक्त भे ज्ञानी।
मानस लिख्यो सर्व गुन खानी। पढ़ि गुनि तरे तरैं बहु प्रानी।
जे घट में घुसि कै लियो छानी। ते समुझैं अन्धे की बानी।
जिनकी मन मति है बौरानी। उन मानस की कदरि न जानी।१२।
पद:-
सतगुरु करि जिन सुमिरन जाना ते नहिं जगत में भिनके।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख रहते जिनके।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि करतल ह्वै गइ तिनके।
अन्धे कहैं धन्य ते प्राणी गुरु भाई हम उनके।४।