१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१७०)
पद:-
करमा कुबिजा गणिका सेवरी प्रेम प्रभू से कीना।
अन्त त्यागि तन निजपुर पहुँचीं सिंहासन आसीना।
सीधी सादी चारौं माई तीरथ ब्रत नहि कीन्हा।
अन्धे कहैं प्रीति विश्वास से हरि को बसि करि लीन्हा।४।
पद:-
करमा कुबिजा गणिका सेवरी प्रेम प्रभू से कीना।
अन्त त्यागि तन निजपुर पहुँचीं सिंहासन आसीना।
सीधी सादी चारौं माई तीरथ ब्रत नहि कीन्हा।
अन्धे कहैं प्रीति विश्वास से हरि को बसि करि लीन्हा।४।