१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१७१)
पद:-
सर्व शक्तिमान रूप नाम हरि का जान लो।
सतगुरु से भेद जानि नेम टेम ठान लो।
शरनि तरनि मरनि जियति घट में घुसि छान लो।
तेज होय लय में जाय सुधि बुधि को सान लो।
दिब्य दृष्टि देखौ सुनौ सुख के नैन कान लो।
बिमल बिमल अनहद धुनि अमृत का पान लो।६।
सुर मुनि औ शक्तिन गृह खान पान मान लो।
नागिनी जगाय षट चक्कर घुमरान लो।
सातौं कमलन को उलटि दलन की फुलान लो।
भाँति भाँति की सुगन्ध स्वरन से उड़ान लो।
निर्भय निर्बैर सदा मुक्ति भक्ति ज्ञान लो।
अन्धे कहैं तन को त्यागि अवध जाय थान लो।१२।