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२१० ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(२३२)


पद:-

जुक्ती से मुक्ती मिलै जुक्ती से हो ज्ञान।

जुक्ती से भक्ती मिलै जुक्ती से विज्ञान।१।

जुक्ती सुर मुनि की कही अंधे कीन्ह बखान।

जुक्ती को जान्यो सही ते भे भक्त महान।२।

सूरति शब्द कि जुक्ति यह सतगुरु द्वारा जान।

अंधे कह माने बचन खुलि जाँय आँखी कान।३।

दिब्य दृष्टि तब जाय ह्वै गुप्त प्रगट लो जान।

अंधे कह सतगुरु कृपा यही है ब्रह्म क ज्ञान।४।

तप धन लेय बचाय जो सो है पूरा सूर।

अंधे कह कैसे बचै निज को मानै घूर।५।