२४१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥
पद:-
भगतौं निकली वहाँ भगतैया ।
जियतै में मन किह्यो न काबू करत फिरत धुरतैया।
सतगुरु करो भजन बिधि जानो छूटे कपट खटैय्या।
अमृत पियो सुनो घट अनहद बाजत बिमल बधैय्या।
नागिनि जगै चक्र षट बेधैं सातों कमल खिलैय्या।५।
सुर मुनि आय आय कर भेटैं जै जै कार करैय्या।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि सन्मुख जग पितु मय्या।
अन्धे कहैं अन्त निजपुर हो छूटै जग दुख दैय्या।८॥